‘रिश्ता’ कहना, देखना, सुनना सब कुछ अच्छा लगता है। लेकिन क्या उतना ही अच्छा रिश्ते को समझना लगता है या निभाना भी लगता है ?

सचमुच बहुत आसान होता है , किसी से जुड़ जाना लेकिन बहुत मुश्किल होता है, उससे जुड़े रहना ।

रिश्ते और पौधे दोनों एक समान होते हैं, शौक और आकर्षण में हम दोनों की ओर अपना लगाव दिखाते हैं, जैसे हम नए पौधे को घर में लाते हैं, लगाते हैं, सोशल मीडिया के जमाने में उसका दिखावा भी करते हैं लेकिन उसकी निरंतर देखभाल करना भूल जाते हैं ।

उस पौधे को बढ़ने के लिए, जीने के लिए क्या आवश्यक है… यह सब भूलकर फिर से अपनी दुनिया में रम जाते हैं और ठीक यही प्रवृत्ति, यही व्यवहार हम इंसान अपने बनाए गए रिश्तों के साथ भी करते हैं।

शुरू में तो बहुत आकर्षित होते हैं, लगाव रखते हैं, दिखावा करते हैं, ध्यान रखते हैं लेकिन जब वह रिश्ता, वह व्यक्ति, आपका आदी हो जाता है, आपके लिए अपनी भावनाएं, अपना समय सब कुछ खर्च करने लगता है, तब आप उसे कम महत्व देकर, अपनी व्यस्त दिनचर्या का बहाना देकर यह बताने और जताने की लगातार कोशिश करने लगते हैं कि तुम बस एक नाम मात्र का रिश्ता हो मेरे लिए और फिर जिसने आपमें अपनी खुशियाँ तलाशी थीं, वह टूट जाता है निराशा के उस कुएँ में चला जाता है, जहाँ से चाह कर भी नहीं निकल पाता है।

इसलिए या तो पौधे और रिश्तों को स्वयं से दूर रखें और यदि उनसे जुड़े तो सिर्फ जुड़े नहीं बल्कि जुड़े रहें। अपने प्रेम, समय, सहानुभूति, लगाव और देखभाल की भावनाओं से अपने रिश्ते को संचित करें और उन्हें संजोएं अन्यथा सिर्फ यादें होंगी, रिश्ते नहीं।


Vinita Tiwari

Cheerful soul

2 Comments

Sunil Chauhan · September 10, 2024 at 4:52 pm

आगि आंच सहना सुगम, सुगम खड़ग की धार,
नेह निभावन एक सम, महा कठिन ब्योहार।

Priyanka Pathak · September 11, 2024 at 5:09 pm

Bilkul sahi likha h

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