सुनहरी सी,
गुनगुनी धूप की चादर ओढ़े
चाय की चुस्कियों संग की सुबह
याद दिलाती है
तुम हो यहीं कहीं इर्द गिर्द
धूप- छाँव तले…

पलाश के
फूलों से भरी डाली
गाँव की पगडंडी पर
साथ साथ चलते
हाथों से हाथों की वो छुअन
तरोताज़ा होकर आज भी
ज़िंदा है मेरे दिल में…

तुम्हें खोने का डर
तुम्हें पाने से कहीं ज़्यादा
हावी था मेरे ज़ेहन में
दूर से ही तुम्हारे पास होने के
एहसास को ज़िंदा रखा है मैंने…

दूर हो तुम मगर
सुबह, शाम ,
मेरी अलसाई दोपहर में ,
एक मुस्कुराहट बन मेरे होठों पर
शामिल रहते हो…

बस… अब… हमेशा
दूर रहकर पास रहना
पास रहकर दूर होने के एहसास को
शामिल न कर पाऊँगी
मेरे इस सूने से बिखरे जीवन में
तुम हो… यहीं कहीं…
मेरे झूठे से यकीं में शामिल हो…

© चंचलिका


Chanchlika Sharma

Pure soul

2 Comments

Gursharan Singh · April 27, 2022 at 8:34 pm

बहुत सुंदर प्रस्तुति ?

Neeta garg · April 27, 2022 at 9:20 pm

अति सुंदर रचना, मेरे मन के आस पास है,
तुम यहीं हो मेरे इर्द गिर्द।

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