ज़िंदगी को बेहतरीन बनाकर
जीने की एक तमन्ना थी
यादों के पिटारेों के संग
गुफ़्तगू करने का इरादा था….
ख़ाका तजुर्बे का साथ था,
मगर जीने की आदत र यूँही
पल पल बदलने लगी
यही जीवन का फलसफ़ा था….
गणित के सारे गूढ़ रहस्य
पल पल भारी पड़ने लगे
जीवन के पन्ने शून्य रह गये
शायद आँकलन ही अधूरा था….
फ़क़ीरी की दहलीज़ पर खड़े लोग
शहंशाह से क्यों लगते थे
खुश थे जीवन की आपाधापी में भी
कहीं कोई क्लेश न था….
रहमत ने जो भी दिया
जीने के लिए काफी है
और पाने की चाहत में ही
ज़िंदादिली को हमने खोया था….
© चंचलिका
1 Comment
Nivedita Ganguli · June 13, 2022 at 5:41 am
Beautiful…. Like your words always.