बेशकीमती बूँदों को
अब और न ज़ाया करो।
चुपके चुपके राज़ ए दर्द
दिल में न छुपाया करो…

कौन जाने फिर से कब
चलने लगे बसंती हवा।
झूठ मूठ के वादों से अब
दिल को न बहलाया करो…

चाहत की परछाई धुंधली होती
दिल की फितरत होती ताज़ी।
चराग़ ए मुहब्बत जले न जले
नफ़रत की दीवार झुकाया करो…

रहमत की रहम जब मिलती है
ख़िज़ा में भी बहार आती है।
लहरों की चाहत हो फिर भी
दरिया को पत्थर से न सताया करो…

आफ़ताब की रौशनी होती फीकी
जब बादल घिर आते हैं।
ज़मीं आसमाँ की दोस्ती जैसी
कभी अपनी मिसाल बनाया करो…

© चंचलिका


Chanchlika Sharma

Pure soul

2 Comments

Dr Ved · April 9, 2022 at 12:41 pm

Very sweet composition!

Bhawana sinha · April 14, 2022 at 9:30 am

Very realistic

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