बंद दरवाज़े के अंदर
कमरा ख़ामोशी से
पनाह दे रहा था
दो अजनबियों को….

ऑंखों में ख़्वाबों को समेटे
उसकी मुस्कान बता रही है
हर हाल खुश रहेगी,
इस अजनबी के साथ…

सात फेरों का नहीं
काग़ज़ी हस्ताक्षर का
बंधन है दोनों का….

पुरुष का पुरुषार्थ ,
स्त्री को पनाह तो दे दिया
मगर उसके गुरुर ने
इस रिश्ते के नर्म रेशे को
अभी पहचाना नहीं ,
गर्माहट को महसूस किया नहीं….

कमरे की दीवारों की सरगोशियाँ
एक दिन दोनों के दिल को
सिखा देंगी प्रेम की भाषा
खुल जायेंगी दिल की गिरह
पुरुष, स्त्री की अधूरी कहानी
हो जायेगी पूरी दोनों के
प्यार भरी मुस्कान के साथ….

© चंचलिका


Chanchlika Sharma

Pure soul

2 Comments

Chanchalika Sharma · December 28, 2022 at 12:29 pm

Thnx a lot

Vineeta Prakash · December 28, 2022 at 6:13 pm

Beautiful poem

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