ज़िंदगी को भरपूर
जीने के लिए
ज़िंदादिल होकर
जीना बहुत जरुरी है…
ये और बात है कि
रोज़मर्रा जीने के लिए
अनेकों सवालों के जवाब
कई बार हासिल नहीं होते…
गर्म रेत की तरह
चटखता है दिल में गुबार
बर्फ़ सी होती ज़िंदगी में
धुँआ भी तो उठता है बेशुमार…
बारीकियों को
नज़र अंदाज़ कर
चलो जी लेते हैं
ज़िंदगी का शेषांश…
जाने कब हाशिये पर
दस्तख़त करने की
नौबत आ जाये , और
ज़िंदगी ख़ामोश हो जाये…
© चंचलिका
1 Comment
Sutapa · April 15, 2022 at 7:35 pm
Beautiful poem..
Heart touching…