स्वाभिमान के आँगन में
अन्याय के खिलाफ
एक मुकद्दमा
अंकुरित हुआ ।
जहाँ मरने के दस वर्ष बाद
मृतक को स्वर्ग से बुलाया गया
बकायदे रजिस्ट्री कराया गया।
अंकुरण के पश्चात
खाद -पानी के रुप में
सारे ग्राह्य सबूत उसकी जड़ों में डाला गया
क्योंकि जड़ें खाती है
पूरा पेड़ लहलहाता है।
सत्य का पथ
आलोकित करने के लिये
ताकि सत्य लहलहा उठे
बोल पड़े सत्य
लेकिन हर तारीख पर
वह तड़फड़ाता रहा
कभी हर्जे सहित संशोधन
कभी आधिवक्ता शोक
कभी हड़ताल
कभी उसकी मर्जी
जैसे तारीख ही उसका सब कुछ हो
नियति बन गयी है
तारीरव ।
पहले मेरे माता -पिता ने उसे रोपा और सींचा
वह चल बसे
फिर मैने उसे पुष्पित
पल्लवित करने की कोशिश की
मै भी चल बसूँगा
फिर मेरा लड़का हो सकता है कहीं से सुन जाय कि
सत्य पराजित नही होता
परेशान होता है
इसी सत्यमेव जयते की आशा में
परेशानी मोल ले
शायद वह भी न रहे …।
आखिर व्यादेश प्रार्थना पत्र खाकर अत्यन्त स्वस्थ हो गया है मेरा लॉडला
सात सौ अठ्ठानवे/ अट्ठासी।
पता नहीं क्यों
अन्ततः इजलास पर आकर निश्चिन्त
हाेकर सो जाता है
चैन की नींद
अगले तारीख तक
कभी निर्णित न होने के निमित्त।
फिर-फिर परेशान करने के लिये
ताकि दुनिया जान ले कि
सत्य पराजित नही होता वह तो
केवल परेशान
होता है ।
भूत, भविष्य ,वर्तमान के
ढ़हते आलम्बों पर जब टिक जाता है
तब कहीं निर्णय मिल पाता है।
© डॉ० कुमार विनोद
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