रंग गुलालों के मौसम ने
ढ़ेरों खुशियाँ लायी है ।
पतझड़ देते है संदेशे
फागुन की ऋतु आयी है।।
पेड़ों पर पत्तों के किसलय
कोंपल बन कर आयी है।
मनमोहक ऋतुराज यहाँ है
मादकता भी छायी है
आम्र के बौरों और महुआ का
गंध यहाँ खींच लायी है।
पतझड़…………….।

फाल्गुन के कोरे चुनर पर
मौसम ने रंग फेका है
तितली आयेंगी बगियन में
फूलों को अंदेशा है
मंगल गुंजन करते भौरें
गूँज उठी शहनाई है।
पतझड़…………….।

ऐपन थाप जब भाभी देती
शोख़ ननद के गालों पर
रंग उड़ेल कर भागे देवर
उलझे -बिखरे बालों पर
सबसे छोटकी देवरानी ने
पटक के रंग लगायी है
पतझड़……………..।

खेलूँगा मै राधा के संग
कृष्ण भी आस लगाये है
फाग हो ब्रज या बरसाने का
गोपी संग हर्षाये है।
ग्वाल -बाल सब ताल ठोकते
श्याम न वंशी बजायी है।
पतझड़……………..।


Dr. Kumar Vinod

केन्द्रीय नाजिर - सिविल कोर्ट, बलिया

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