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मुसाफिर हूँ यारों

मुसाफ़िर हूँ यारों, मुझे चलते जाना है,चलना ही दीन मेरा, रस्ते को ख़ुदा माना है मुकाम हो मुकर्रर तो लुत्फ क्या डगर का,बेमज़ा सफर है, जब पता हो कहाँ जाना है आलिम नहीं मैं कोई, पर इतना, मैंने जाना है,चलना ही ज़िन्दगी है,मन्ज़िल तो रुक जाना है। © Sunil Chauhan

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खिड़की

प्रत्येक भवनों, बसों, रेलगाड़ियों व हेलिकॉप्टरों में होती हैं खिड़की जिसके द्वारा, हम देख सकते हैं भविष्य को, सुंदर प्राकृतिक नजारों को। और फिर,बाड़ की भीषण विभिषिकाओं को देखने को भी तो चाहिए होती हैं एक खिड़की जिससे हम दौरों के दौरान देखते हैं लाचार व हैरान मौन व वाचाल Read more…

nature

प्रकृति की सीख

जब हम किसी पौधे को लगाते हैं और जब हम किसी पौधें को काटते हैं तब भी जब हम किसी रोते को हंसाते हैं और जब हम किसी को रूलाते हैं तब भी जब हम कुछ अच्छा करते हैं और जब हम कुछ बुरा करते हैं तब भी यहां तक Read more…