मुसाफ़िर हूँ यारों, मुझे चलते जाना है,
चलना ही दीन मेरा, रस्ते को ख़ुदा माना है

मुकाम हो मुकर्रर तो लुत्फ क्या डगर का,
बेमज़ा सफर है, जब पता हो कहाँ जाना है

आलिम नहीं मैं कोई, पर इतना, मैंने जाना है,
चलना ही ज़िन्दगी है,मन्ज़िल तो रुक जाना है।

© Sunil Chauhan


Sunil Chauhan

मुसाफ़िर हूँ यारों, मुझे चलते जाना है

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