हुई शाम यार अपने तमाम आये,
कहीं से मय आयी कहीं से जाम आये

उम्र गुजर गई एक खत की आरज़ू में
ना थी किस्मत कि तुम्हारा पयाम आये

जब भी पूछे कोई मेरी मंज़िल-ए-मक़सूद
हर बार जुबाँ पे अबस तेरा ही नाम आये

गजब जलवा है तेरे अज़मत-ए-हुश्न का
सजदे में आये जो भी ख़ास-ओ-आम आये

जुदा होना पड़े तुमसे मुझे किसी मोड़ पर
या रब मौत का इससे पहले मुकाम आये

छुट्टी लेनी पड़ी कल दफ्तर से मुझको
इतनी शिद्दत से ना किसी को जुकाम आये

© Sunil Chauhan


Sunil Chauhan

मुसाफ़िर हूँ यारों, मुझे चलते जाना है

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