(प्रथम आत्माहुति)
खुली हवा में साँस लेने का सुख
उस कबूतर से पूछो
जो पिजड़े में कभी कैद न हो ।
मुक्त गगन में दम्भ भरता है
उड़ने की कलाबाज़ी दिखाता है
नजदीक से इंद्रधनुष छूकर
लौटने पर इतराता है ।
पर कितना कठिन है
खुशी-खुशी सुहागिनों को अपनी मांग अपने हाथों पोंछना ।
चूड़ियों को बेरहमी से फोड़ना । कितना आत्म विश्वास, कितना आत्म उत्सर्ग ।
गर्जना करना , हुंकार भरना ,चल पड़ना ।
जैसे स्वराज उनके आँचल और मुट्ठी में हो ।
उनकी मांग के सिंदूर से
सूर्य का ताप भी हो जाता था निस्तेज
बढ़ जाती थी लालिमा ।
इसीलिए स्वराज के लिए जब-जब टूटती थी बेड़ियाँ
कहा जाता था सुहागिनें
विधवा नहीं ,वीरांगना हो जाती थी।
कर देती थी दुश्मन को एकदम पस्त ।
और देखते ही देखते हो गया
ब्रिटेन का सूर्य
हमेशा- हमेशा के लिए अस्त ।
हमेशा चूड़ियों की खनक से
भोर होने का एहसास होता है ।
और बेड़ियों की खनक से
गुलामी का पर्दाफाश होता है ।
आजादी की लड़ाई में सम्मिलित
एक सेनानी के
हैसियत का पता
हमें तब चला जब आकाश की
ओर निर्निमेष पलकों से निहारते हुए उस सेनानी ने कहा-
यह नीला आकाश लाख चाहे पर, मेरे पीठ पर लगे कोडों के निशान से गहरा नहीं हो सकता ।
सच मानिए-
एकसच्चे राष्ट्र भक्त की भी
अंतिम इच्छा यही होती है ।
जो भी दुश्मन हो उसका हर समय भरम निकले ।
बार-बार जन्म हो और बार-बार दम निकले ।
आखिरी सांस में बस वंदे मातरम् निकले |
क्रांति का बिगुल भी सर्वप्रथम यही से बजा था ।
बनी बनाई योजना की भनक लग गई ।
अपने अति उत्साह के कारण सुबहे आजादी के लिए कुछ देर रुकना पड़ा |
हमेशा देश के ही बारे में जिसने सोचा –
कभी नहीं किया किसी का अमंगल ।
बड़े गर्व से पूरा देश कहता है पांडेय मंगल ! पांडेय मंगल !! पांडेय मंगल !!!
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