कठिन है ये सफर
व्यथित है मन
हूं अकेला चंचल है मन।
कैसे समझाऊं खुद को
कैसे रिझाऊं
एक वेदना भरी है
अंगार सा उठा है।
कोई समझ ना पाए
एक भूचाल सा उठा है।
कश्मकश की लहर ने
बेसुध बना दिया है
उधेड़बुन के जाल ने
जंजाल बना दिया है।
कोई तो रोक लो
मैं मर ना जाऊ
इस बीच भंवर में
फंस ना जाऊ।
कोशिश की है सदा
संयम से काम लेने की
हंसते खेलते हुए अपनों संग
हसीन ज़िन्दगी बिताने की।
इन्हें टूटते देखा तो
संभाल ना सका
अभिवादन वाले इन हाथों
को भी झुका ना सका
हूं अकेला कोई तो
संभाल लो।

© प्रीतम श्रीवास्तव


Abhivyakti

अभिव्यक्ति - The Voice of Soul

0 Comments

Leave a Reply

Avatar placeholder

Your email address will not be published. Required fields are marked *