वो एक मानव ही था,
जो सड़क से जा रहा था.
आसमान की तरफ देखते हुए,
क्या इतने ही तारे हैं?
जितने की इन ऊंची इमारतों,
पर जगमगाती हुई रोशनिया.

वो भागता है,
उसके पीछे आने वाली भीड़ से,
नहीं मैं नहीं भाग सकता,
वो रुक जाता है, मगर नहीं,
वो रुक भी नहीं सकता.

सोचता है,
क्या मैं, नहीं चल सकता था?
गांव की उस पगडंडी पर,
चल सकता था,
शायद इस से भी तेज और तेज.

वह खासँता है, सोचता है,
मैं थक गया हूं,
मुझे रुकना चाहिए, मगर नहीं,
कहां रुकूं, कहीं नहीं,
मैं रुक भी नहीं सकता.

तभी एक विचार आता है,
आरक्षित करा लुं, क्या सीट ?
गाँव के लिए
कराता है,
और पहुंच जाता है गांव.

भीड़ तो नहीं है यहां,
यदा-कदा, कभी कोई,
भागता नजर आ जाता है यहां,
पगडंडी पर चलता है,वो,
जितना शहर में चल पाता नहीं वो,

महसूस करता है वो,
एक अलग ही ऊर्जा.
बैठ जाता है,कभी कुए पर
ठहर जाता है,
कभी मंदिर के चबूतरे पर,

बढ़ जाता है, आगे,
पूछता है, हाल -चाल.
मित्र के घर, किसी पुराने,
रुक जाता है,क्षणभर,

सोचता है,
क्या यह सुकून,
मिल पाएगा,शहर में?
यहीं, ठहर जाऊं कहीं,
या,शहर बुला रहा है,
मुझे,अभी भी ?

© अमन वर्मा


Aman Verma

Naawik

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