जब से भइल बा टिकटवा हो गांव के,
याद आवता जमुनिआ के छाँव के.

बाग़ बगइचा, खटिया मचिया, ताल तलइया बांगर दियरा,
मॉल, फ्लैट, डनलप के गद्दा, कवनो ना एहनी के नियरा,
लाली बिलाली, गुल्ली डान्टा, लट्टू, कबड्डी, चीका
टेनिस, गोल्फ, बिलियर्ड्स सब एकनी के आगे फीका.

खूब शान बा शहरिया के लेकिन,
इ त धुरियो नइखे गउवाँ के पाँव के,
याद आवता जमुनिआ के छाँव के.

© Sunil Chauhan


Sunil Chauhan

मुसाफ़िर हूँ यारों, मुझे चलते जाना है

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