जब से उनका दीदार हुआ है,
फ़ना चैन-ओ-करार हुआ है।

गुल ही गुल हैं ता-हद्द-ए-नज़र,
हर तरफ गुले गुलज़ार हुआ है।

कुछ नज़र नहीं आता उनके सिवा,
ये  अब  कौन सा आज़ार हुआ है।

जिस ख़त में मेरे  असरार बन्द थे,
वो आज रक़ीब का अख़बार हुआ है।

अब तो ज़ब्त ने भी साथ छोड़ दिया,
ईश्क़ में दिल कैसा नाचार हुआ है।

© Sunil Chauhan


Sunil Chauhan

मुसाफ़िर हूँ यारों, मुझे चलते जाना है

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