इस दर्द भरे दिन की शाम नहीं है,
इस आगाज़ का अंजाम नहीं है।
ऐ चर्ख तूने लूट लिया सब कुछ मेरा,
फिर भी तुझको इत्मीनान नहीं है.
चैन-ओ-करार लूटा, अब जी चाहिए,
क्या ज़रा भी दीन-ओ-ईमान नहीं है,
कह दो दिल की तमाम नफरतों से
चली जाएँ ये उनका मकान नहीं है
जो डूबा उसकी को साहिल मिला,
ईश्क़ जैसा कोई इम्तेहान नहीं है
ख़ामोशी का सबब एहतेराम है उनका
वो समझते हैं इसके ज़ुबान नहीं है
ये बेरुखी ये बेज़ारी सिर्फ मेरे लिए है
वगरना किस पर वो मेहरबान नहीं है
अकेले आये थे अकेले चल दिए
कोई अहबाब-ओ-सामान नहीं है
© Sunil Chauhan
चर्ख़ (फ़ारसी) – आकाश ; आसमान
एहतेराम (अरबी) – आदर; सम्मान
अहबाब (अरबी) – मित्र; दोस्त; प्रिय जन
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