बाइस साल बाद मिली जीत पर
कहीं खुशी कहीं दिखावे का सदमा
लालच में बिना सोचे समझे
फिर कर दिया मुकदमा
सामाजिक अपमान से
चढ़ गयी भौं
लोगों के चढ़ाने पर दायर कर दिया
सी० ए० अठारह बटे नौ।
आखिर! सत्य परेशान होता है पराजित नहीं
सत्य को परखने के लिये
परेशानी की ताबूत में विधि ने ठोक दी एक कील
कर दिया बिना सबूत बिना गवाह
सिविल अपील
हम ये अभी सोच ही रहे थे कि इतनी देर से निर्णय का होना
न्यायिक प्रक्रिया को धिक्कार है
तभी ये जाना कि अपील,अपीलार्थी का मौलिक अधिकार है।
वाह रे सत्य !
बिल्कुल सोने की गुणवत्ता की तरह
सीता ने भी सत्य के लिये अपने सतीत्व
की परख समाज को दी थी ।
हतोत्साहित होकर न्याय को विगलित देख सब्र का बॉध टूट गया…
पुनः धरती में समा गयी
उस समय भी सत्य नहीं डिगा था ।
तब भी दुनिया जानती थी कि सत्य क्या है
सुकरात ने सत्य के लिये जहर पिया था और
हरिश्चन्द्र ने रोहिताश्व के शव के लिये
कर लिया था।
सच मानिये-
धैर्य से देखेंगे तो
इसकी मंजिल बहुत खूबसूरत है
सत्य पराजित हो ही नहीं सकता ।
विश्वास तो कीजिये
विक्रमादित्य का सिंहासन अभी हिला नहीं है
विपक्षी को लाख करने दीजिये मनमानी
न्यायपालिका कर देगी
दूध का दूध
और पानी का पानी ।
© डॉ० कुमार विनोद
0 Comments