चीकन देहियाँ सीसा जइसन चमके चकाचक
मनवाँ से कूड़ा करकट खर पतवार ना गइल

घर संसार छोड़ि के चलि गइनी एकांत में
मन से लेकिन कबहुँ गाँव बाज़ार ना गइल

उखी बिखी लागल रहे जियरा रहे अशांत
जबले अभिलाषा मनसा के भरमार ना गइल

सुरुजे के खोज तानी दिया बाती बारि के
भरल दुपहरिया में भी अंधकार ना गइल

© सुनील चौहान


Sunil Chauhan

मुसाफ़िर हूँ यारों, मुझे चलते जाना है

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