काश! समझ लेता हर कोई, यहाँ
मोहब्बत, दर्द के सिवा कुछ भी नहीं
दर्द के खारा जल को भी पीना पड़ता
खुद को खोने के सिवा, कुछ भी नहीं
उस रास्ते पर चलने को मुड़ते हैं कदम
जहाँ शूलों के सिवा और कुछ भी नहीं
अंतर्मन से आवाज़ आती है, मीठी सी
समझा तो, गरल के सिवा कुछ भी नहीं
लाचारी, मजबूरी का ही नाम मोहब्बत है
ख़ुद को ग़मज़दा पाने के सिवा कुछ भी नहीं
मीरा, राधा, कृष्ण की दीवानी बन रह गई
दो नैनों में अश्रु धार के सिवा कुछ भी नहीं
ग़र मोहब्बत सत्य है तो वह हासिल नहीं होता
बस औरों को समर्पित के सिवा कुछ भी नहीं
प्रेम सत्य है, शिव है, सुंदर सात्विक रुप है
पा लेना, प्रेम के अंत के सिवा कुछ भी नहीं
जहाँ पाने की आकंठ चाह ही समाप्त हो जाये
वहाँ प्रेम बस द्वैत प्रेम के सिवा कुछ भी नहीं
रुह की मोहब्बत, रुह से , निराकार आलिंगन हो,
पूर्ण ब्रह्माण्ड में अद्वैत प्रेम के सिवा कुछ भी नहीं
© चंचलिका
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