तुम्हारी बंदगी ही
अब मेरी ज़िंदगी बन गई है…
तुम्हारा नाम ही
अब मेरा परिचय बन गया है…
तुम्हारे संस्कार ही
मेरे जीवन का अब मूल – मंत्र है…
तुम्हारे वाक्यांश ही
मेरे जीवन का अब वेद – वेदांत है…
रीति – रिवाज़ से , धर्म – कर्म से
अब तुम्हारा स्थान मेरे जीवन में
परमेश्वर का बन गया है…
मगर … मैं कौन हूँ?
© चंचलिका
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