मृग मरीचिका सी
अनुसरण करती कभी कभी
तुम्हारी यादें उभर आतीं हैं
मेरे मानस पटल पर…
यथार्थ के धरातल
के समीप पहुँचकर
सारी सोच अर्ध सत्य के
बीच लोट रही थी…
भग्नावशेष चिंताधारा
पंछियों की उन्मुक्तता से परे
एकांत की तलाश में थी
सारे सृजन को टटोलती…
शाम ढलते अब कोई
जुगनू चमकते नहीं
शायद अँधेरे से दोस्ती
कर ली होगी…
मेघों की आगोश में
बारिश की बूँदें
झिलमिला कर आश्वासन देतीं,
सब्र का फल मीठा होता है…
© चंचलिका
0 Comments