चल रहा था पटरी पर ,
घर की ओर वह…
उसकी चाल में लापरवाही थी,
उसे घर पहुँचने की जल्दी थी…
बिना आवाज़ की आती हुई गाड़ी को
देख भी न सका कि क्षण भर में
चिर शांत होकर पटरी पर गिर पड़ा…
ख़ून से लथपथ,
चार टुकड़ों की लाश पर
पड़ी जब सबकी नज़र तो,
हाहाकार सा मच गया…
किसी ने सोचा
उसके परिवार की बेबसी पर,
किसी की निगाह थी उसके
कटे पैर से जुड़े
पॉकेट के मनिबैग पर ,
तो किसी की
दूसरी पटरी पर पड़े
उसके कटे हाथ की घड़ी पर…
ये लोग भीड़ छंटने की आशा लिए
अपनी किस्मत को सराह रहे थे…
किसका मुँह देखा होगा आज?
ज़िंदा लोगों से न सही
मरे हुए इंसान से
कुछ आमदनी तो हुई…
वाह री दुनिया!
तेरा दस्तूर क्या यही है?
इंसान , जिसके लिए व्याकुल रहता है,
ज़िंदगी क्या यही है?…
ज़िंदगी और मौत के बीच
क्या है फ़ासला?
तय करना है एक दिन
सभी को यह फ़ासला…
© चंचलिका
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