खुशियाँ ढूँढ़कर थक गए थे हम
बाज़ारों में खरीदने की कोशिश की,
मगर नाकामयाब रहे…

इतना तो पता था
ज़िंदगी के गुज़र बसर के लिए
खुशियाँ जरुरी है,
मगर कभी हासिल नहीं हुई…

एक दिन यूँ ही, घर से निकल कर
बेख़्याली में चलते चलते
गली के मोड़ पर,
मैले कुचले कपड़ों में,
कुछ बच्चों को, आपस में खेलते हुए, खिलखिलाते हुए पाया…

निश्छल, निष्कपट उन मासूम फरिश्तों में
मैंने खुश रहने का अंदाज़ देखा…

उनसे सीखा, कैसे बेवजह
बिना शर्तों के, लागत के बिना
खुश रहा जाता है…

© चंचलिका


Chanchlika Sharma

Pure soul

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