आँखों ही आँखों में मुलाक़ात हो जाती है
जुबाँ खुलती भी नहीं मगर बात हो जाती है.

बैठे रहते हैं यूँ ही तेरा तसव्वुर किये हुए
जाने कब दिन आता है कब रात हो जाती है

ग़ैरमुमकिन है कहीं और शिक़स्त खा जाएँ
मगर दिल के खेल में अक्सर मात हो जाती है

बड़े रहज़न हैं वहाँ निगाहों से लूट लेते हैं
लुट लुट के यूँ ही अपनी ख़ैरात हो जाती है

अज़ब ही शिफ़ा है सोहबत-ए-अहबाब में
दर्द-ओ-ग़म गुम, खुशी की बरसात हो जाती है

© Sunil Chauhan


Sunil Chauhan

मुसाफ़िर हूँ यारों, मुझे चलते जाना है

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