बिस्मिल हुआ है दिल निगह की मार से,
नोक दिख रही है तीर की जिग़र के पार से
जब से मारा है उन्होंने तबस्सुम फेंक कर
तब से रहने लगे हैं हम कुछ बेक़रार से
इस क़दर खाया है धोका तेरे अहद पर
भरोसा उठ सा गया है लफ्ज़ ऐतबार से
ख़ुदा जाने क्या है उनकी बेख़ुदी का सबब
हम तो चाहते हैं बहुत और वो हैं बेज़ार से
बहुत नाज़ुक़ है दिल मेरा ज़रा सम्भाल के
ये वो शय नहीं जो और ले आएंगे बाज़ार से
शिकस्ता दिल लिए फिरते हैं तेरे शहर में
रफ़ू कर दे कोई दिलबर किसी औज़ार से
© Sunil Chauhan
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