पिता के स्कूटर पर बैठी
जाती एक लड़की से
मुझे प्रेम था
जब उसकी नाज़ुक उंगलियां
किताब के पन्नों पर
चहलकदमी करतीं
मैंने उन्हें अपने
सीनें पर महसूस किया
प्रेम मुझे उससे था
इतना कि…
मैंने उसे कोई
प्रेम पत्र नहीं लिखा
क्योंकि चिंता थी मुझे
अपने प्रेम की,
उसके लगाएं पेड़ की।

© धनंजय शर्मा


Dhananjay Sharma

बोलें तभी जब वो मौन से बेहतर हो

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